Sharad Purnima ki Katha

Sharad Purnima ki Katha

**शरद पूर्णिमा की सम्पूर्ण कथा**

शरद पूर्णिमा का पर्व हिंदू धर्म में विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और रात में चांदनी के साथ अमृत वर्षा करता है। शरद पूर्णिमा के साथ जुड़ी एक विस्तृत पौराणिक कथा है, जो इस प्रकार है:

बहुत समय पहले एक निर्धन ब्राह्मण परिवार था, जिसमें पति-पत्नी के साथ-साथ उनकी तीन पुत्रियाँ थीं। वे अत्यंत निर्धनता में जीवन यापन कर रहे थे। निर्धनता के कारण वे कई बार भोजन के अभाव में भी रहते थे। ब्राह्मण दंपति ने बहुत कठिनाइयों का सामना किया, परंतु कोई राहत नहीं मिली। एक दिन ब्राह्मण पत्नी ने सोचा कि वह देवी लक्ष्मी की पूजा करके उन्हें प्रसन्न करेगी, जिससे शायद उनकी दरिद्रता समाप्त हो जाए।

एक दिन ब्राह्मण पत्नी ने एक साधु से पूछा, “हे साधु महाराज! कृपया मुझे यह बताइए कि मैं कौन-सी पूजा और व्रत करूँ जिससे हमारी दरिद्रता समाप्त हो और हमें धन-धान्य की प्राप्ति हो?”

साधु ने कहा, “शरद पूर्णिमा का व्रत बहुत ही प्रभावशाली होता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा और जागरण करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। तुम शरद पूर्णिमा के दिन व्रत रखो और रात्रि को जागरण करके देवी लक्ष्मी का पूजन करो, तुम्हारी दरिद्रता दूर हो जाएगी।”

ब्राह्मण पत्नी ने साधु की बात मानी और शरद पूर्णिमा के दिन पूरे परिवार के साथ व्रत रखा। रात को लक्ष्मी जी का विधिपूर्वक पूजन किया और जागरण किया। जब रात्रि का समय हुआ, तब देवी लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर उनके घर आगमन किया। उन्होंने देखा कि ब्राह्मण पत्नी और उसका परिवार उनके स्वागत के लिए जाग रहे हैं और उनकी पूजा कर रहे हैं। देवी लक्ष्मी प्रसन्न होकर बोलीं, “हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हारे जागरण और पूजन से अत्यधिक प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हारे घर से दरिद्रता को हमेशा के लिए समाप्त करती हूँ और तुम्हारे घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होगी।”

इसके बाद देवी लक्ष्मी ने उस ब्राह्मण परिवार को आशीर्वाद दिया और वहां से चली गईं। ब्राह्मण परिवार की दरिद्रता समाप्त हो गई, और उनके घर में सुख-समृद्धि आ गई। उनका जीवन धन-धान्य से भरपूर हो गया।

एक अन्य कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में गोपियों के साथ महारास रचाया था। शरद पूर्णिमा की रात को भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी की मधुर ध्वनि से गोपियों को आकर्षित किया और उन्होंने इस पावन रात में रासलीला रचाई। ऐसा कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात गोपियों के साथ महारास करते समय प्रत्येक गोपी के साथ स्वयं को उपस्थित किया। इस प्रकार यह दिन रासपूर्णिमा के रूप में भी प्रसिद्ध है।

Sharad Purnima ki Katha

**शरद पूर्णिमा के पीछे एक और महत्वपूर्ण मान्यता यह है** कि इस रात चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं में होता है और अपनी किरणों के माध्यम से अमृत की वर्षा करता है। इस रात को खुले आकाश के नीचे खीर को रखकर चंद्रमा की किरणों का स्पर्श कराना शुभ माना जाता है। अगले दिन सुबह वह खीर प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती है, जिससे स्वास्थ्य लाभ होता है और माना जाता है कि इसमें औषधीय गुण समाहित हो जाते हैं।

इस प्रकार, शरद पूर्णिमा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि इसमें स्वास्थ्य और समृद्धि के उपाय भी निहित हैं। देवी लक्ष्मी की कृपा पाने और जीवन में धन-धान्य की वृद्धि के लिए इस दिन जागरण और पूजा करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।

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