Kavra Chauth Ki Katha करवा चौथ की कथा
एक समय की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। साहूकार अपनी धनी संपत्ति और व्यापार के लिए जाना जाता था, लेकिन उसके परिवार में एक विशेष प्रथा थी, जो सभी परिवार वालों को एकसाथ बांधती थी—करवा चौथ का व्रत। यह पर्व खासतौर पर महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाता था।
एक दिन कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि आई। साहूकार की सेठानी और उसकी सातों बहुएं, साथ ही उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखने का निर्णय लिया। सभी महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करने लगीं। यह व्रत उनके लिए सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि उनके पारिवारिक बंधनों को और मजबूत बनाने का एक अवसर था।
रात का समय आया। साहूकार के सभी बेटे भोजन करने बैठे। उन्होंने अपनी बहन को भी भोजन करने के लिए कहा, लेकिन बहन ने विनम्रता से कहा, “भाई, अभी चांद नहीं निकला है। मैं चांद के निकलने का इंतजार करूंगी और उसे अर्घ्य देकर ही भोजन करूंगी।”
साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे। उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देखकर बहुत दुख हुआ। उन्होंने सोचा कि उनकी बहन इतनी भूखी है, और चांद निकलने में अभी समय है। इसलिए उन्होंने एक योजना बनाई।
वे नगर के बाहर गए और वहां एक बड़े पेड़ पर चढ़ गए। उन्होंने वहां आग जला दी और लौटकर अपनी बहन से कहा, “देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम अर्घ्य देकर भोजन कर लो।”
साहूकार की बेटी ने अपने भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को देखकर सोचा कि वास्तव में चाँद निकल आया है। उसने अपनी भाभियों से कहा, “देखो, चांद निकल आया है। तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो।”
लेकिन भाभियों ने कहा, “बहन, अभी चांद नहीं निकला है। तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में दिखा रहे हैं।”
साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों की बात को अनसुना करते हुए, भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। लेकिन इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की बेटी पर अप्रसन्न हो गए।
गणेश जी की अप्रसन्नता का नतीजा यह हुआ कि साहूकार की बेटी का पति बीमार पड़ गया। उसकी बीमारी के इलाज में घर में बचा हुआ सारा धन खर्च हो गया। साहूकार की बेटी बहुत चिंतित हो गई। उसने अपने पति की बीमारी को लेकर चिंता करना शुरू कर दिया और अब उसे अपने किए गए दोष का एहसास हुआ।
उस लड़की ने अपने किए हुए पाप का गहराई से एहसास किया और उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की। उसने मन में ठान लिया कि वह फिर से विधि-विधान के अनुसार चतुर्थी का व्रत करेगी। उसने सभी लोगों का आदर किया और उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया।
साहूकार की बेटी ने पूरी श्रद्धा के साथ व्रत का आयोजन किया। उसने एक लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाए और भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय और गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की। एक लोटे में जल भरकर उसके ऊपर श्रीफल रखकर कलावा बांध दिया।
उसने मिट्टी का करवा लिया और उसमें जल भरकर ढक्कन में शक्कर भर दिया। फिर उसने दक्षिणा रखी, और रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाया। इसके बाद उसने धूप, दीप, अक्षत और पुष्प चढ़ाकर भगवान का पूजन किया। पूजा के उपरांत उसने गेहूं के दाने लेकर चौथ माता की कथा सुनी।
रात्रि में जब चंद्रमा का उदय हुआ, तो उसने चंद्रदेव को अर्ध्य दिया और अपने बड़ों का आशीर्वाद लेकर व्रत को समाप्त किया।
उसकी श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी प्रसन्न हो गए। उन्होंने साहूकार की बेटी को आशीर्वाद दिया और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया।
साहूकार की बेटी ने समझा कि श्रद्धा और विश्वास से किया गया व्रत कितनी बड़ी शक्ति रखता है। उसने यह भी सीखा कि छल-कपट, अहंकार, लोभ और लालच को त्याग कर, भक्ति भाव से किया गया कोई भी कार्य सफल होता है।
अगर कोई मनुष्य श्रद्धा और भक्तिभाव के साथ चतुर्थी का व्रत करता है, तो वह सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त हो जाता है। यह व्रत केवल एक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह पति-पत्नी के रिश्ते की मजबूती और प्रेम का प्रतीक है।
जब भी महिलाएं करवा चौथ का व्रत करती हैं, तो वे इस कथा को याद करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
इस तरह, साहूकार की बेटी ने न केवल अपने पति की बीमारी को दूर किया, बल्कि अपने परिवार को फिर से खुशहाल बनाया। उसकी श्रद्धा और भक्ति ने उसे संकट से उबारा और भगवान गणेश की कृपा से वह धन, संपत्ति और सुख-संपन्नता से युक्त हो गई।
यह कथा हमें यह सिखाती है कि व्रत और पूजा का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि यह हमारे जीवन में सकारात्मकता और प्रेम को भी बढ़ाती है। जब हम अपने रिश्तों में प्रेम और विश्वास रखते हैं, तब हमें हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति मिलती है।