छठ पूजा का धार्मिक महत्त्व
छठ पूजा हिन्दू धर्म का एक विशेष पर्व है, जिसमें सूर्य देवता और छठी मैया की उपासना की जाती है। यह त्योहार भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में खासतौर पर मनाया जाता है, लेकिन अब यह पूरे देश में फैल चुका है। इस पर्व का महत्त्व स्वास्थ्य, उन्नति और समृद्धि से जुड़ा है। छठ पूजा में सूर्य देवता को अर्घ्य देकर उनकी कृपा से सुख, शांति और संतान प्राप्ति की कामना की जाती है।
छठ पूजा के पीछे कई प्रचलित कथाएँ हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख पौराणिक कथाएँ इस पर्व से जुड़े धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व को दर्शाती हैं। ये कथाएँ इस पर्व के मूल में छठी मैया और सूर्य देव की उपासना के कारणों को भी स्पष्ट करती हैं। आइए इनमें से कुछ प्रमुख कथाओं पर नज़र डालें:
1. राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी की कथा
कहा जाता है कि राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी रानी मालिनी के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने महर्षि कश्यप के कहने पर एक विशेष यज्ञ किया। यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हुईं, लेकिन दुर्भाग्यवश उनका बच्चा मृत पैदा हुआ। इस पीड़ा से दुखी राजा-रानी आत्महत्या करने की सोचने लगे। तभी देवी षष्ठी प्रकट हुईं और उन्हें कहा कि वह उनकी पूजा करें। देवी षष्ठी की कृपा से राजा-रानी को संतान का आशीर्वाद मिला। तभी से षष्ठी देवी की पूजा करने का प्रचलन शुरू हुआ, और इसे छठ पूजा के रूप में जाना जाता है।
2. कर्ण की कथा
महाभारत के अनुसार, कर्ण सूर्य देव के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन सुबह जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे और उनकी पूजा करते थे। सूर्य देव की कृपा से ही कर्ण को अपार शक्ति और तेज प्राप्त हुआ। मान्यता है कि कर्ण के समय से ही सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा का आरंभ हुआ, और बाद में यह छठ पूजा का हिस्सा बन गई।
3. भगवान राम और माता सीता की कथा
एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान राम और माता सीता 14 वर्ष का वनवास समाप्त करके अयोध्या लौटे, तब उन्होंने राम राज्याभिषेक के लिए कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य देवता की पूजा की। माता सीता ने इस दिन सूर्य को अर्घ्य दिया और उपवास रखा, जो आगे चलकर छठ पूजा के रूप में प्रसिद्ध हुआ। माना जाता है कि यह पूजा समृद्धि और सुख-शांति लाने के लिए की जाती है।
4. छठी मैया की कथा
छठ पूजा में मुख्य रूप से छठी मैया की पूजा होती है, जिन्हें बच्चों की रक्षा करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि छठी मैया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं और उन्हें संतान की रक्षा और लंबी आयु का वरदान देने वाली देवी माना जाता है। छठी मैया की कृपा से संतान की लंबी उम्र, सुख और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इसलिए महिलाएँ छठ व्रत कर छठी मैया से संतान के सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
इन कथाओं के आधार पर, छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य सूर्य देव और छठी मैया की उपासना कर संतान और परिवार की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति करना है। यह पर्व न केवल धार्मिक, बल्कि पर्यावरणीय और सामाजिक महत्त्व भी रखता है, जहाँ सूर्य की ऊर्जा और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है।
छठ पूजा की विधि
छठ पूजा में चार दिनों का व्रत रखा जाता है, जिसमें निम्नलिखित विधियाँ सम्मिलित होती हैं:
पहला दिन – नहाय खाय:
व्रत का पहला दिन नहाय-खाय के रूप में जाना जाता है। इस दिन व्रती स्नान करके पवित्र भोजन ग्रहण करते हैं। घर की सफाई की जाती है और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।दूसरा दिन – खरना:
दूसरे दिन को खरना कहा जाता है, जिसमें व्रती दिनभर उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद गुड़ से बनी खीर और रोटी का प्रसाद लेते हैं। इसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है।तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य:
तीसरे दिन, सूर्यास्त के समय घाटों पर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती घाट पर दीप जलाते हैं और विशेष विधि से पूजा करते हैं। यह दृश्य अत्यंत भक्तिपूर्ण होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु घाट पर एकत्र होते हैं।चौथा दिन – उषा अर्घ्य:
व्रत के अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दौरान भक्तगण सूर्य की आराधना कर प्रसाद बाँटते हैं और व्रत का समापन करते हैं। यह दिन समाज में एकता और भाईचारे का प्रतीक है।
छठ पूजा का पर्यावरणीय और सामाजिक महत्त्व
छठ पूजा पर्यावरण से गहराई से जुड़ा हुआ पर्व है। इस व्रत में सूर्य को जल का अर्घ्य देकर प्रकृति और जल का महत्त्व बताया जाता है। छठ पूजा में प्रयोग किए जाने वाले सामग्री जैसे बाँस की टोकरी, पत्तों के बने सूप, और मिट्टी के दीपक पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। इस पर्व का एक अन्य विशेष पहलू यह है कि यह जाति, धर्म, और वर्ग के भेदभाव से परे सभी को एक साथ लाता है।