छठ पूजा: सूर्योपासना का महापर्व
छठ पूजा भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य भगवान और छठी मैया की आराधना का पर्व है, जिसमें व्रतधारी नहाय-खाय, खरना और संध्याकालीन अर्घ्य जैसे प्रमुख विधान करते हैं। इस लेख में हम छठ पूजा का महत्व, इसकी विधि और छठ पूजा के पीछे छिपी कथा पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
छठ पूजा का महत्त्व
छठ पूजा सूर्य भगवान और छठी मैया की आराधना का पर्व है। यह पूजा विशेष रूप से सूर्यदेव की उपासना के लिए की जाती है, जो जीवन और ऊर्जा का प्रतीक माने जाते हैं। सूर्य भगवान के प्रति आभार प्रकट करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के उद्देश्य से छठ पूजा का विधान किया जाता है। छठ पूजा में विशेष रूप से व्रतधारियों का आत्मसंयम और समर्पण महत्वपूर्ण होता है।
छठ पूजा की कथा
छठ पूजा की कई धार्मिक कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, महाभारत काल में द्रौपदी और पांडवों ने कठिन परिस्थितियों में छठ पूजा की थी, जिससे उनकी कठिनाइयाँ दूर हुईं और उनके जीवन में सुख-समृद्धि आई। एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान राम और माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद छठ पूजा की थी।
छठ पूजा का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह व्रत नारी-शक्ति और उनके संकल्प का प्रतीक है। इस दिन व्रतधारी महिलाएँ उपवास रखती हैं और कठोर तपस्या के साथ सूर्य भगवान और छठी मैया की आराधना करती हैं।
छठ पूजा का विधान
1. नहाय-खाय (पहला दिन)
छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय के रूप में जाना जाता है। इस दिन व्रतधारी अपने घर और अपने मन को शुद्ध करते हैं। इस दिन खासतौर पर कद्दू-भात का प्रसाद बनाया जाता है और इसे खाने के बाद व्रतधारी संकल्प लेते हैं।
2. खरना (दूसरा दिन)
दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रतधारी पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को विशेष प्रसाद का सेवन करते हैं। इस प्रसाद में विशेष रूप से गुड़ की खीर और रोटी का प्रयोग होता है। खरना के दिन का प्रसाद लेने के बाद व्रतधारी अगले दिन के लिए कठिन निर्जला व्रत की तैयारी करते हैं।
3. संध्याकालीन अर्घ्य (तीसरा दिन)
छठ पूजा का तीसरा दिन संध्याकालीन अर्घ्य का होता है। इस दिन व्रतधारी डूबते हुए सूर्य को जल, दूध और प्रसाद के साथ अर्घ्य देते हैं। इस दौरान नदी या तालाब के किनारे भक्तों का बड़ा समूह एकत्र होता है, जो मिलकर भगवान सूर्य की स्तुति करता है।
4. उषाकालीन अर्घ्य (चौथा दिन)
छठ पूजा का अंतिम दिन उषाकालीन अर्घ्य का होता है। इस दिन व्रतधारी उगते सूर्य को अर्घ्य देकर अपना व्रत समाप्त करते हैं। उषाकालीन अर्घ्य के समय व्रतधारियों के चेहरे पर एक अलग ही तेज और उत्साह देखने को मिलता है, जो उनकी भक्ति और समर्पण को दर्शाता है।
छठ पूजा में क्या सावधानियाँ रखें
छठ पूजा में कुछ विशेष सावधानियाँ रखी जाती हैं:
- व्रतधारियों को पूजा के समय शुद्धता और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- प्रसाद बनाने और चढ़ाने में पूरी पवित्रता रखनी चाहिए।
- पूजा के समय ध्यान रखें कि कोई भी अपवित्र वस्त्र या वस्तु प्रसाद के पास न हो।
- छठ पूजा के समय किसी भी प्रकार की मांसाहारी और तामसिक चीजों से बचना चाहिए।
छठ पूजा के दौरान होने वाली कठिनाइयाँ और उनका समाधान
छठ पूजा के दौरान कठोर तपस्या और लंबे उपवास से कई बार व्रतधारी थकान महसूस करते हैं। इसलिए व्रतधारियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे उपवास के समय खुद को आराम दें और जरूरत के हिसाब से आराम करें। साथ ही परिवार के लोग व्रतधारी का सहयोग करें ताकि वे इस कठिन व्रत को सफलतापूर्वक पूरा कर सकें।
छठ पूजा का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। इस पर्व में परिवार और समाज के लोग एकजुट होकर पर्व मनाते हैं। छठ पूजा के दौरान आपसी सद्भाव, स्नेह और सहकार्य की भावना देखने को मिलती है। गाँवों और शहरों में इस पर्व के समय मेलों का आयोजन होता है, जिसमें विभिन्न तरह के कार्यक्रम और संस्कृतिक नृत्य होते हैं।
छठ पूजा 2024 की तिथियाँ और शुभ मुहूर्त
नहाय-खाय: 6 नवंबर 2024 (बुधवार)
इस दिन व्रतधारी अपने घरों की सफाई कर सात्विक भोजन के साथ व्रत की शुरुआत करते हैं।खरना: 7 नवंबर 2024 (गुरुवार)
खरना के दिन पूरा दिन उपवास रखते हैं और रात में गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद लेकर उपवास की शुरुआत करते हैं।संध्याकालीन अर्घ्य (डूबते सूर्य को अर्घ्य): 8 नवंबर 2024 (शुक्रवार)
डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का शुभ समय: शाम 5:28 बजे से 5:40 बजे तक।उषाकालीन अर्घ्य (उगते सूर्य को अर्घ्य): 9 नवंबर 2024 (शनिवार)
उगते सूर्य को अर्घ्य देने का समय: सुबह 6:22 बजे से 6:35 बजे तक।
इन तिथियों पर छठ पूजा की पूजा विधि को पूरा करके लोग अपनी आस्था को प्रकट करते हैं और भगवान सूर्य देव को श्रद्धा के साथ अर्घ्य अर्पित करते हैं।
छठ पूजा के गीत और भक्ति संगीत
छठ पूजा के दौरान छठ गीतों का विशेष महत्व होता है। छठ के गीतों में माँ की ममता, संतान का प्यार और भगवान सूर्य की महिमा गाई जाती है। कुछ प्रमुख छठ गीत हैं जो इस पर्व पर गाए जाते हैं:
- “कांच ही बाँस के बहंगिया…”
- “उग हो सुरुज देव…”
इन गीतों में छठ पूजा का संदेश, इसकी महिमा और व्रतधारियों की आस्था की झलक मिलती है। ये गीत छठ पूजा की महत्ता को और बढ़ा देते हैं।
छठ पूजा और पर्यावरण
छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और पर्यावरण से भी जुड़ा हुआ है। यह पर्व सूर्य की पूजा और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है। छठ पूजा के दौरान घाटों की सफाई और प्रकृति की सुंदरता का अनुभव होता है। इस पर्व के माध्यम से हमें पर्यावरण संरक्षण और जल की महत्ता का भी संदेश मिलता है।
छठ पूजा का महत्व और सीख
छठ पूजा हमें सिखाता है कि सच्चे मन और पवित्र हृदय से की गई आराधना से कोई भी कठिनाई नहीं टिक सकती। यह पर्व हमें आत्मसंयम, त्याग और समर्पण का संदेश देता है। छठ पूजा के माध्यम से हम सूर्य भगवान के प्रति आभार प्रकट करते हैं और उनकी कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
निष्कर्ष
छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह पर्व हमें प्रकृति और पर्यावरण के प्रति भी जागरूक बनाता है। छठ पूजा का यह महापर्व आत्मसंयम, आस्था और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। छठ पूजा 2025 के इस महापर्व को मनाकर हम अपने जीवन को सुख-समृद्धि और शांति से भर सकते हैं।
सभी पाठकों को छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ!