गोवर्धन पूजा का महत्व और इतिहास
गोवर्धन पूजा का दिन दिवाली के ठीक अगले दिन आता है और इसे अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। यह पर्व भारत में विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के मथुरा और वृंदावन क्षेत्रों में अत्यधिक श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा का महत्व भगवान श्रीकृष्ण की उस लीला से जुड़ा हुआ है, जब उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर वृंदावन के निवासियों को इंद्र के कोप से बचाया था। इस दिन हम भगवान श्रीकृष्ण, गोवर्धन पर्वत, गौ माता, और प्रकृति की पूजा करते हैं, और यह पर्व कृषि, पशुधन और पर्यावरण के प्रति हमारे सम्मान और आभार का प्रतीक है।
इतिहास और कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार गोपियों और ग्वालों ने इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए विशेष यज्ञ का आयोजन किया। भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि इंद्र देव का यह पूजन बारिश के लिए था, जो किसानों के लिए आवश्यक है। लेकिन श्रीकृष्ण ने देखा कि यह केवल इंद्र की शक्ति का प्रदर्शन है। तब उन्होंने लोगों को समझाया कि उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, जो उन्हें भोजन, जल, और हरी-भरी भूमि प्रदान करता है। जब इंद्र ने गुस्से में आकर मूसलधार बारिश भेजी, तो श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सभी लोगों को इसके नीचे सुरक्षित रखा।
गोवर्धन पूजा कैसे की जाती है?
गोवर्धन पूजा के दिन भगवान कृष्ण, गोवर्धन पर्वत और गौ माता की पूजा की जाती है। इस दिन गोबर से बने गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है। इसे फूलों, धूप, दीप, और रंगोली से सजाया जाता है। गांवों और छोटे शहरों में लोग गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उस पर पूजा करते हैं। पूजा के दौरान गाए जाने वाले भजन और कीर्तन इस दिन के खास महत्व को दर्शाते हैं।
पूजा विधि:
- अन्नकूट तैयार करना – अन्नकूट का अर्थ है ‘अन्न का ढेर।’ इस दिन विभिन्न प्रकार के अन्न और सब्जियों को पकाया जाता है। इन व्यंजनों को भगवान श्रीकृष्ण को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है।
- गौ पूजा – गौ माता को विशेष रूप से सजाया जाता है, और उन्हें रंगीन वस्त्र और फूलों से सजाया जाता है। उनके चरणों में भोग रखा जाता है और उन्हें भोजन दिया जाता है।
- गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाना – गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाकर उस पर पूजा की जाती है। इसे रंगोली और पुष्पों से सजाया जाता है।
- आरती और भजन – गोवर्धन पूजा के दौरान भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की आराधना करते हुए भजन और आरती की जाती है। इससे भक्तों में उत्साह और भक्ति की भावना जागती है।
गोवर्धन पूजा के प्रमुख आयोजन स्थल
मथुरा, वृंदावन और गोकुल में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। हजारों श्रद्धालु इस दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने के लिए इकट्ठा होते हैं। यहां परिक्रमा के दौरान विभिन्न धार्मिक स्थलों जैसे राधा कुंड, मानसी गंगा, दान घाटी आदि पर भी पूजा होती है। गोवर्धन परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की होती है और इसमें भक्तगण पैदल यात्रा करते हुए गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। इस दिन परिक्रमा करने से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है।
गोवर्धन परिक्रमा का महत्व
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का विशेष महत्व है, जो भक्तों को गोवर्धन पूजा के महत्व और परंपराओं से जोड़ता है। इस परिक्रमा के दौरान भक्तजनों द्वारा भजन-कीर्तन और भगवान श्रीकृष्ण की लीला का गायन किया जाता है। भक्तों का मानना है कि गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है, और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।
गोवर्धन पूजा के अन्य नाम और अर्थ
गोवर्धन पूजा को विभिन्न स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे अन्नकूट पूजा, गोवर्धन महोत्सव, और कदन-कदवा। अन्नकूट पूजा में भगवान को विभिन्न प्रकार के अन्न और सब्जियों का भोग लगाया जाता है। इस भोग के रूप में चावल, दाल, सब्जियां, मिठाई और अन्य पकवान होते हैं, जिन्हें भक्तजन प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
गोवर्धन पूजा के धार्मिक और सांस्कृतिक पहलू
यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, पशु सेवा और कृषि के प्रति जागरूकता का भी संदेश देता है। गोवर्धन पूजा में गौ माता और कृषि को विशेष महत्व दिया जाता है। यह पर्व भारतीय संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों को संजोने का एक अवसर भी है। इस पर्व के माध्यम से नई पीढ़ी को कृषि, पशु पालन और पर्यावरण संरक्षण के महत्व से अवगत कराया जाता है।
गोवर्धन पूजा के दिन की विशेष परंपराएं
गाय की पूजा: इस दिन गायों को सजाया जाता है और उन्हें विशेष आहार दिया जाता है। ग्रामीण इलाकों में गोवर्धन पूजा में गायों की विशेष रूप से पूजा होती है, और उन्हें भोजन में विशेष मिठाइयां और पकवान खिलाए जाते हैं।
गोबर से गोवर्धन बनाना: गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है। इसके चारों ओर भक्तजन रंगोली बनाते हैं और इसे सजाते हैं। यह परंपरा विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित है।
अन्नकूट प्रसाद: इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को अन्नकूट के रूप में विभिन्न प्रकार के अन्न और सब्जियों का भोग लगाया जाता है। इस प्रसाद को सभी भक्तजनों के बीच बांटा जाता है।
दिव्य दीप जलाना: गोवर्धन पूजा के दिन विशेष प्रकार के दीप जलाए जाते हैं, जो घरों और पूजा स्थलों पर वातावरण को पवित्र और सुंदर बनाते हैं।
गोवर्धन पूजा के धार्मिक मंत्र और आरती
गोवर्धन पूजा के दौरान निम्नलिखित मंत्रों और आरतियों का जाप किया जाता है, जो इस पर्व की आध्यात्मिक महत्ता को और भी बढ़ाते हैं:
मंत्र: “ॐ गोवर्धनधाराय नमः।”
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।”
आरती: गोवर्धन गिरधारी, राजा गोकुल के प्यारे।
श्रीकृष्ण मोहन मुरारी, करुणा के हो निधान।
गोवर्धन पूजा का संदेश और शिक्षा
गोवर्धन पूजा हमें भगवान श्रीकृष्ण के माध्यम से सिखाती है कि हमें प्रकृति, पर्यावरण और पशुधन की रक्षा करनी चाहिए। इस पर्व से हमें समझ में आता है कि हम अपने पारंपरिक संसाधनों के संरक्षण के बिना सुखी जीवन नहीं जी सकते। गोवर्धन पूजा हमें यह भी सिखाती है कि हमें आभार व्यक्त करना चाहिए उन सभी चीजों के लिए जो हमें जीवन में मिली हैं, चाहे वह प्रकृति हो, हमारे परिजन हों, या हमारे पशु हों।
निष्कर्ष
गोवर्धन पूजा एक महत्वपूर्ण पर्व है जो न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि समाज में प्रकृति संरक्षण, पशु सेवा और कृषि के प्रति जागरूकता का भी संदेश देता है। भगवान श्रीकृष्ण की यह लीला हमें कठिनाइयों से निपटने, सामूहिकता की भावना और हमारे पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाती है। इस गोवर्धन पूजा पर हम सभी भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से अपने जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।