अहोई अष्टमी व्रत 2024: महत्व, पूजा विधि, व्रत की सम्पूर्ण जानकारी और शुभ मुहूर्त
अहोई अष्टमी एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है, जिसे विशेष रूप से माताएँ अपने बच्चों की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और कल्याण के लिए मनाती हैं। यह व्रत खासकर उत्तर भारत में लोकप्रिय है और कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कार्तिक मास (अक्टूबर-नवंबर) में मनाया जाता है। अहोई अष्टमी का व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति और उनकी लंबी उम्र के लिए किया जाता है। इस दिन माताएँ पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और संध्या के समय अहोई माता की पूजा करती हैं।
अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी का पर्व माता और संतान के विशेष संबंध को दर्शाता है। इस व्रत को संतान के दीर्घायु, खुशहाल जीवन और उनके भविष्य में आने वाली बाधाओं से रक्षा के लिए किया जाता है। खासकर जिनके जीवन में संतान सुख की प्राप्ति में कठिनाई होती है, वे इस व्रत को बड़ी श्रद्धा से करते हैं। अहोई माता को संतान की रक्षक देवी माना जाता है, जो उनकी सभी समस्याओं और परेशानियों का निवारण करती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत कथा
अहोई अष्टमी व्रत से जुड़ी कथा के अनुसार, एक समय की बात है, एक स्त्री अपने सात बेटों के साथ सुखपूर्वक जीवन बिता रही थी। दीपावली के समय वह अपने घर को सजाने के लिए जंगल से मिट्टी लाने गई। मिट्टी खोदते समय गलती से उसकी कुदाल एक सांप के बच्चे को लग गई, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद, उस महिला के सभी बेटे धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त हो गए। इस घटना से दुखी होकर महिला ने संतों से इसका समाधान पूछा। संतों ने उसे अहोई माता का व्रत करने का सुझाव दिया और कहा कि इससे उसके पाप समाप्त हो जाएंगे और उसे संतान सुख की प्राप्ति होगी। महिला ने श्रद्धा और नियम से अहोई माता का व्रत किया, जिससे उसकी सभी समस्याओं का निवारण हुआ और उसे फिर से संतान सुख प्राप्त हुआ।
अहोई अष्टमी व्रत विधि
अहोई अष्टमी के दिन माताएँ सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं। यह व्रत निर्जला रखा जाता है, यानी पूरे दिन कुछ भी खाया-पीया नहीं जाता है। दिनभर देवी अहोई की पूजा की तैयारी की जाती है और संध्या समय व्रत की पूजा संपन्न की जाती है। पूजा विधि निम्नलिखित है:
- दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं: पूजा के स्थान पर स्वच्छ स्थान पर दीवार पर चावल या गेहूं के घोल से अहोई माता का चित्र बनाएं या बाजार से अहोई माता का पोस्टर लेकर उसे दीवार पर चिपकाएं।
- कलश स्थापना: एक मिट्टी के पात्र में जल भरकर, उसके ऊपर एक नारियल रखें और उसे दीवार के सामने स्थापित करें। इसे कलश के रूप में पूजा जाता है।
- धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें: अहोई माता के चित्र के सामने दीपक जलाएं और धूप दिखाएं। पूजा के दौरान चावल, मिठाई, फल, और दूध का नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
- सप्तमी तारों की पूजा: संध्या के समय आकाश में सप्तमी तारों को देख कर उनका पूजन किया जाता है। पूजा के दौरान सप्तमी तारों के दर्शन करके अहोई माता की कथा सुनी जाती है। उसके बाद माता के समक्ष जल चढ़ाया जाता है और व्रत को समाप्त किया जाता है।
- व्रत का पारण: जब रात में तारों का उदय हो जाता है, तब महिलाएँ उन्हें अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं।
अहोई अष्टमी पर पूजन सामग्री
- अहोई माता की तस्वीर या चित्र
- कलश
- रोली, मौली, चावल, चंदन
- फल, मिठाई, और साबुत धान (गेहूं, चावल आदि)
- दीपक और घी
- जल का लोटा
- सप्तमी तारे के दर्शन के लिए चावल और जल
अहोई अष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त
अहोई अष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त सूर्यास्त के बाद आता है। इस दिन तारों के दर्शन करके व्रत तोड़ा जाता है, इसलिए पूजन का समय तारे उदय होने के बाद होता है।
- अष्टमी तिथि प्रारंभ: 23 अक्टूबर 2024 को प्रातः 9:30 बजे से
- अष्टमी तिथि समाप्त: 24 अक्टूबर 2024 को प्रातः 11:20 बजे तक
- तारों के दर्शन का समय: शाम 6:30 बजे से 7:30 बजे के बीच
अहोई अष्टमी व्रत के अन्य नाम
अहोई अष्टमी को विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे ‘अहोई आठें’ के नाम से भी पुकारा जाता है। कुछ क्षेत्रों में इसे ‘कृष्ण अष्टमी’ भी कहा जाता है क्योंकि यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में आता है।
अहोई अष्टमी व्रत के लाभ
अहोई अष्टमी व्रत के कई आध्यात्मिक और सामाजिक लाभ होते हैं:
- संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
- व्रत करने से माताओं को अपनी संतान के प्रति उत्तरदायित्व और प्रेम को और अधिक गहरा करने का अवसर मिलता है।
- अहोई माता की कृपा से संतान के जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाओं और समस्याओं का निवारण होता है।
कुछ महत्वपूर्ण बातें
- अहोई अष्टमी का व्रत केवल संतान वाली महिलाएँ ही नहीं, बल्कि वे महिलाएँ भी करती हैं जिन्हें संतान प्राप्ति की इच्छा होती है।
- इस दिन पूजा के दौरान माताएँ अपनी संतानों के उज्ज्वल भविष्य और उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं।
- अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद आता है, और इस व्रत की पूजा विधि करवा चौथ से मिलती-जुलती है, बस फर्क इतना है कि करवा चौथ में चंद्रमा की पूजा होती है और अहोई अष्टमी में तारों की।
निष्कर्ष
अहोई अष्टमी माताओं के लिए एक अत्यंत पवित्र और महत्त्वपूर्ण दिन है, जिसमें वे अपने बच्चों की कुशलता और समृद्धि की कामना करती हैं। इस व्रत के माध्यम से वे न केवल अपनी संतानों के जीवन को सुरक्षित करती हैं, बल्कि अपने मनोबल और आध्यात्मिकता को भी प्रबल बनाती हैं। अहोई अष्टमी के इस पर्व से माता-पिता और संतान के बीच के प्रेम और विश्वास के बंधन को और अधिक सुदृढ़ किया जाता है।
इस प्रकार अहोई अष्टमी व्रत केवल धार्मिक महत्व ही नहीं, बल्कि पारिवारिक प्रेम, संस्कार और समाज की उन्नति का प्रतीक भी है।